आरती संग्रह में आपका स्वागत है

यह सुंदर और प्रसिद्ध आरती एकत्र करने की एक पहल है

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

रिद्धि देत सिद्धि देत बुद्धि देत देवा ।
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निजमनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन वरन विराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै।
शंकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग वन्दन।।

विद्यावान गुणी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कवि कोविद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र विभीषन माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना।।
जुग सहस्र योजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।

दोहा
पवन तनय संकट हरन। मंगल मूरति रूप।।
राम लखन सीता सहित । हृदय बसहु सुर भूप।।

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का,
स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर, पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी, मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा,
स्वामी पाप(कष्ट) हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तन मन धन सब है तेरा,  स्वामी सब कुछ है तेरा ।
तेरा तुझको अर्पण, तेरा तुझको अर्पण,
क्या लागे मेरा ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥

सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची। नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची।
सर्वांगी सुन्दर उटि शेंदुराची। कण्ठी झळके माळ मुक्ताफळांची॥

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती॥
 जय देव जय देव

रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा। चन्दनाची उटि कुंकुमकेशरा।
हिरे जड़ित मुकुट शोभतो बरा। रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया॥

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती॥
 जय देव जय देव

चरनीच्या घागरिया रन झुन वाजती | तेने नादे देवा अंबर गरजती |
था था ठुमकट ठुमकट नाचे गणपति | शंकर पार्वती कौतुक पाहती ||

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती॥
 जय देव जय देव

लम्बोदर पीताम्बर फणिवर बन्धना। सरळ सोण्ड वक्रतुण्ड त्रिनयना।
दास रामाचा वाट पाहे सदना। संकटी पावावे निर्वाणीरक्षावे सुरवरवन्दना॥

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती॥
 जय देव जय देव

शेंदुर लाल चढायो अच्छा गजमुख को
दोन्दिल लाल बिराजे सूत गौरिहर को
हाथ लिए गुड लड्डू साई सुरवर को
महिमा कहे ना जाय लागत हूँ पद को

जय जय जय जय जय
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव

अष्ट सिधि दासी संकट को बैरी
विघन विनाशन मंगल मूरत अधिकारी
कोटि सूरज प्रकाश ऐसे छबी तेरी
गंडस्थल मद्मस्तक झूल शशि बहरी

जय जय जय जय जय
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव

भावभगत से कोई शरणागत आवे
संतति संपत्ति सबही भरपूर पावे
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे
गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे

जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता
जय देव जय देव

घालीन लोटांगण वंदीन चरण । डोळ्यांनी पाहिन रूप तुझे ।
प्रेमें आलिंगीन आनंद पूजन । भावे ओवाळिन म्हणे नामा ।।

त्वमेव माता पिता त्वमेव । त्वमेव बन्धु: सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव । त्वमेव सर्वं मम देवदेव ।।

कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा । बुध्यात्मना वा प्रकृति स्वभावात् ।
करमि यद्यत् सकलं परस्मै । नारायणायेती समर्पयामि ।।

अच्युतं केशवं राम नारायणम् कृष्णदामोदरं वासुदेवं भजे।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभम् जानकीनायकं रामचंद्र भजे ।।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।

।। गणपतिबाप्पा मोरया ।। ।। मंगलमूर्ती मोरया ।।

कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि ॥1॥
मन्दारमालाकुलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥2॥
श्री अखण्डानन्दबोधाय शोकसन्तापहारिणे।
सच्चिदानन्दस्वरूपाय शंकराय नमो नम:॥3॥ 

गजाननं भूत गणादि सेवितं,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम् ।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्,
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥

नीलाम्बुज श्यामल कोमलांगम सीतासमारोपित वामभागम् |
पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम् ||

करपूर गौरम करूणावतारम, संसार सारम भुजगेन्द्र हारम |
सदा वसंतम हृदयारविंदे, भवम भवानी सहितं नमामि ||

मंगलम भगवान् विष्णु, मंगलम गरुड़ध्वजः |
मंगलम पुन्डरी काक्षो, मंगलायतनो हरि ||

सर्व मंगल मांग्लयै, शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्रयम्बके गौरी,नारायणी नमोस्तुते ||

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव

कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा, बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात
करोमि यध्य्त सकलं परस्मै, नारायणायेति समर्पयामि ||

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव |
जिब्हे पिबस्व अमृतं एत देव, गोविन्द दामोदर माधवेती ||

प्रथम:
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तनि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
ते ह नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा: ॥

द्वितीय:
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने।
नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मस कामान् काम कामाय मह्यं।
कामेश्र्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय।
महाराजाय नम: ।

तृतीय:
ॐ स्वस्ति, साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं
वैराज्यं पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं ।
समन्तपर्यायीस्यात् सार्वभौमः सार्वायुषः आन्तादापरार्धात् ।
पृथीव्यै समुद्रपर्यंताया एकरा‌ळ इति ॥

चतुर्थ:
ॐ तदप्येषः श्लोकोभिगीतो।
मरुतः परिवेष्टारो मरुतस्यावसन् गृहे।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ॥
॥ मंत्रपुष्पांजली समर्पयामि ॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस, जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू , हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद, कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुख हरता । सुख संपति करता ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन, वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

दो भुज चार चतुर्भुज, दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते, त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

अक्षमाला वनमाला, मुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै, भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर, बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक, भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

कर के मध्य कमंडल, चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी, जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित, ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा ।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥
जय शिव ओंकारा…॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा…॥

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निस दिन सेवत, मैया जी को निस दिन सेवत
हर विष्णु विधाता||
ॐ जय लक्ष्मी माता ||

उमा रमा ब्रम्हाणी, तुम ही जग माता
ओ मैया तुम ही जग माता,
सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत, नारद ऋषि गाता||
ॐ जय लक्ष्मी माता ||

दुर्गा रूप निरंजनी, सुख सम्पति दाता
ओ मैया सुख सम्पति दाता,
जो कोई तुम को ध्यावत, ऋद्धि सिद्धि धन पाता||
ॐ जय लक्ष्मी माता ||

तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता
ओ मैया तुम ही शुभ दाता
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भव निधि की दाता||
ॐ जय लक्ष्मी माता ||

जिस घर तुम रहती, तहँ सब सदगुण आता
ओ मैया सब सदगुण आता
सब सम्ब्नव हो जाता, मन नहीं घबराता||
ॐ जय लक्ष्मी माता ||

तुम बिन यज्ञ न होता, वस्त्र न कोई पाता
ओ मैया वस्त्र ना पाटा
खान पान का वैभव, सब तुम से आता||
ॐ जय लक्ष्मी माता ||

शुभ गुण मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि जाता
ओ मैया क्षीरोदधि जाता
रत्ना चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता||
ॐ जय लक्ष्मी माता ||

धुप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो
मैया माँ स्वीकार करो
ज्ञान प्रकाश करो माँ, मोहा अज्ञान हरो||
ॐ जय लक्ष्मी माता ||

महा लक्ष्मी जी की आरती, जो कोई जन गाता
ओ मैया जो कोई गाता
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता||
ॐ जय लक्ष्मी माता ||

ॐ वैभव लक्ष्मी माता,
मैया वैभव लक्ष्मी माता,
भक्तों के हितकारिनी,
भक्तों के हितकारिनी,
सुख वैभव दाता,
ॐ वैभव लक्ष्मी माता ।

लक्ष्मी माँ का नाम जो लेता,
सुख सम्पति पाता,
मैया सुख सम्पति पाता,
दुःख दरिद्र मिटता,
दुःख दरिद्र मिटता,
बांछित फल पाता ।

ॐ वैभव लक्ष्मी माता,
मैया वैभव लक्ष्मी माता,
भक्तों के हितकारिनी,
भक्तों के हितकारिनी,
सुख वैभव दाता,
ॐ वैभव लक्ष्मी माता ।

लक्ष्मी माता तू जग माता,
जग पालक रानी,
मैया जग पालक रानी,
हाथ जोड़ गुण गाते,
हाथ जोड़ गुण गाते,
जग के सब प्राणी ।

ॐ वैभव लक्ष्मी माता,
मैया वैभव लक्ष्मी माता,
भक्तों के हितकारिनी,
भक्तों के हितकारिनी,
सुख वैभव दाता,
ॐ वैभव लक्ष्मी माता ।

हे माँ तेरी शरण में जो आता,
तेरी भक्ति पाता,
मैया तेरी भक्ति पाता,
माँ तेरी ममता पा के,
माँ तेरी ममता पा के,
अंत स्वर्ग जाता ।

ॐ वैभव लक्ष्मी माता,
मैया वैभव लक्ष्मी माता,
भक्तों के हितकारिनी,
भक्तों के हितकारिनी,
सुख वैभव दाता,
ॐ वैभव लक्ष्मी माता ।

ॐ वैभव लक्ष्मी माता,
मैया वैभव लक्ष्मी माता,
भक्तों के हितकारिनी,
भक्तों के हितकारिनी,
सुख वैभव दाता,
ॐ वैभव लक्ष्मी माता,
ॐ वैभव लक्ष्मी माता ।

जय पार्वती माता,
जय जय पार्वती माता,
ब्रह्म सनातन देवी,
ब्रह्म सनातन देवी,
शुभ फल की दाता,
जय पार्वती माता ।

अरिकुलपद्म विनासनी,
जय सेवक त्राता,
मैया जय सेवक त्राता,
जगजीवन जगदम्बा,
जगजीवन जगदम्बा,
हरिहर गुण गाता,
जय पार्वती माता ।

सिंह का वाहन साजे,
कुण्डल है साथा,
मैया कुण्डल है साथा,
देवबंधू जस गावत,
देवबंधू जस गावत,
नृत्य करत ताथा,
जय पार्वती माता ।

सतयुग रूप शील अतिसुन्दर,
नाम सती कहलाता,
नाम सती कहलाता,
हेमांचल घर जन्मी,
हेमांचल घर जन्मी,
सखियन संगराता,
जय पार्वती माता ।

शुम्भ निशुम्भ विदारे,
हेमांचल स्थाता,
हेमांचल स्थाता,
सहस्त्र भुज तनु धरिके,
सहस्त्र भुज तनु धरिके,
चक्र लियो हाथा,
जय पार्वती माता ।

सृष्टि रूप तुही जननी,
शिव संग रंगराता,
मैया शिव संग रंगराता,
नन्दी भृंगी बीन लही है,
नन्दी भृंगी बीन लही है,
हाथन मदमाता,
जय पार्वती माता ।

देवन अरज करत,
तव चित को लाता,
मैया तव चित को लाता,
गावत दे दे ताली,
गावत दे दे ताली,
मन में रंगराता,
जय पार्वती माता ।

श्री प्रताप आरती मैया की,
जो कोई गाता,
मैया जो कोई गाता,
सदा सुखी नित रहता,
सदा सुखी नित रहता,
सुख सम्पति पाता,
जय पार्वती माता ।

जय पार्वती माता,
जय जय पार्वती माता,
ब्रह्म सनातन देवी,
ब्रह्म सनातन देवी,
शुभ फल की दाता,
जय पार्वती माता ।

जय पार्वती माता,
जय पार्वती माता..

ॐ जय जय शनि महाराज,
स्वामी जय जय शनि महाराज,
कृपा करो हम सब पर,
दुःख हरियो प्रभु आज,
ॐ जय जय शनि महाराज ।

ॐ जय जय शनि महाराज,
स्वामी जय जय शनि महाराज,
कृपा करो हम सब पर,
दुःख हरियो प्रभु आज,
ॐ जय जय शनि महाराज ।

सूरज के तुम बालक,
जग में बड़े बलवान,
सब देवो में तुम्हारा,
प्रथम मान है आज,
ॐ जय जय शनि महाराज ।

विक्रम राज को हुआ घमंड,
अपने श्रेष्ठ होने का,
चकनाचूर किया बुद्धि,
हिला दिया सरताज,
ॐ जय जय शनि महाराज ।

प्रभु राम और पांडव को,
भेज दिया वनवास,
कृपा हुई जब तुम्हारी,
स्वामी बचाई उनकी लाज,
ॐ जय जय शनि महाराज ।

सूर्य सा राजा हरिशचंद्र,
स्वामी बेच दिया परिवार,
पास हुए परीक्षा में,
देकर धन और राज,
ॐ जय जय शनि महाराज ।

माखन चोर कन्हैया,
स्वामी गैयन के रखवार,
कलंक माथे का धोया,
धरे है रूप विराट,
ॐ जय जय शनि महाराज ।मैं हूँ दीन अज्ञानी,
स्वामी भूल भई हमसे,
क्षमा शान्ति दो नारायण,
प्रणाम लो महाराज,
ॐ जय जय शनि महाराज ।

ॐ जय जय शनि महाराज,
स्वामी जय जय शनि महाराज,
कृपा करो हम सब पर,
दुःख हरियो प्रभु आज,
ॐ जय जय शनि महाराज ।

॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देखि नाग मन मोहे ॥
मैना मातु की हवे दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद माहि महिमा तुम गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला । जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट ते मोहि आन उबारो ॥
मात-पिता भ्राता सब होई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु मम संकट भारी ॥
धन निर्धन को देत सदा हीं । जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । शारद नारद शीश नवावैं ॥
नमो नमो जय नमः शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा । ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्
नवकंज लोचन कंज मुखकर कंज पद कन्जारुणम्
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत
रावरो एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित
हिय हरषी अली तुलसी भवानी: पूजि पूनी पूनी
मुदित मन मंदिर चली जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु
न जाइ कहि मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे

अथ श्री इंद्रकृत श्री महालक्ष्मी अष्टक

॥ श्री महालक्ष्म्यष्टकम् ॥

श्री गणेशाय नमः

नमस्तेस्तू महामाये श्रीपिठे सूरपुजिते ।
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ १ ॥

नमस्ते गरूडारूढे कोलासूर भयंकरी ।
सर्व पाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ २ ॥

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी ।
सर्व दुःख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥३ ॥

सिद्धीबुद्धूीप्रदे देवी भुक्तिमुक्ति प्रदायिनी ।
मंत्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ४ ॥

आद्यंतरहिते देवी आद्यशक्ती महेश्वरी ।
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ५ ॥

स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ती महोदरे ।
महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ६ ॥

पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्हस्वरूपिणी ।
परमेशि जगन्मातर्र महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ७ ॥

श्वेतांबरधरे देवी नानालंकार भूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मार्त महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ८ ॥

महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं यः पठेत् भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धीमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥ ९ ॥

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनं ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्य समन्वितः ॥१०॥

त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रूविनाशनं ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥११॥

॥इतिंद्रकृत श्रीमहालक्ष्म्यष्टकस्तवः संपूर्णः ॥

॥ हनुमानाष्टक ॥
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥

अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥

रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मरो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥

बान लाग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सूत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दिए तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥


रावन जुध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥

बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाये सहाए भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥

काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होए हमारो ॥ ८ ॥

॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥